Saturday, October 2, 2010

सामंतवाद अभी गया नहीं

सवाल केवल प्रोटोकॉल का नहीं है  और नहीं इस बात का कोई ख़ास मतलब रह जाता है कि  कामनवेल्थ  गेम्स का उदघाटन  कौन  करेगा । दरअसल आज़ादी के साठ साल बाद भी हमारी गुलामी की मानसिकता यथावत बनी हुई है। अगर ऐसी बात नहीं  तो फिर गेम्स  के उद्घाघाटन को लेकर इतनी हाय-तौबा क्यों ? सरज़मी हमारी, आयोजन हमारा, और उद्घाटन कोई और करे.. ये कैसी विडंबना है। सरकार के पैरोकार भले ही यह कुतर्क गढ ले कि कॉमनवेल्थ गेम्स की यही परंपरा रही है  तो इस परंपरा को ख़ारिज किये जाने की जरूरत है अन्यथा यह गुलामी की वर्षी का प्रतीक बनकर रह जायेगा।

5 comments:

  1. sahi kaha aapne... is prakar ki mansikta agar hamari sarkar rakhegi to hum developed countries ki katputli matra ban kar reh jayenge...

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  2. महोदय हम भारतवर्ष के वासी हैं।
    यह हमारी प्राचीनतम सभ्यता की विशेषता रही हैं।
    किसी और से समारोह का उद्घाटन कराना गुलामी का प्रतीक नही है यह हमारी विशेषता है।
    आप अपने घर पर कोई समारोह आयोजित करते हैं तो उसका उद्घाटन स्वंय तो नही कर लेते।

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  3. @ संदीप जी का कथन सही लगा...
    ’अतिथि देवो भव’

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  4. कामनवेल्थ कंट्रीज ही गुलामों की फौज है. कामनवेल्थ गेम्स के बहाने याद दिलाई जाती है कि ये सारे देश कभी ब्रिटिश हुकूमत के गुलाम थे. इस संगठन का ही औचित्य खत्म होना चाहिए.

    चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के जरिये हिंदी ब्लागिंग को शिखर तक पहुंचाएं, यही कामना है....

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